जंगल के फूल
जंगल के फूल
Short Story
लेखक- ओसामा हसन
पता नही ये कौन सा फूल है। जब भी मैं अपने डेरा से निकलता हूं इसे देख कर खुश हो जाता हूं। सोचने लगता हूं। इस जंगल का फूल भी इतना खूबसूरत है। लेकिन फूल शायद मुझे देख कर कभी खुश नही होता। जब भी मैं उधर से गुजरता और फूलों को देखता ऐसा लगता फूल मुझे कह रहा हो "मेरी भी एक फोटो ले लो। सारी दुनिया की फ़ोटो लेते हो मेरी क्यों नही। क्या मैं देखने मे सूंदर नही। क्या मुझे देख कर लोगों को खुशी नही मिलती? क्या फेसबुक पर मुझे लाइक नही मिलेगा" मैंने कई बार मोबाइल निकालने की कोशिश की लेकिन ये सोच कर की आते जाते लोग क्या कहेंगे। मैं अपनी मोबाइल को फिर से पॉकेट में रख लेता। जब भी मैं मोबाइल निकालता मुझे एहसास होता कि ये जंगली फूल मुझे कह रहे हों शाबाश। लेकिन फूलों की शाबाशी पर ये बात भारी पड़ जाती की लोग क्या कहेंगे। एक बार मैंने धीरे से मोबाइल फ़ोटो खीचने की गर्ज़ से निकाला दूर से ही चुपचाप फ़ोटो ले लिया। घर पर आकर जब फ़ोटो देखा तो दूर से भी पिले फूल जो हरे पत्तों के ऊपर थे बहुत सुंदर लग रहे थे। लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि ये फूल मुझे कह रहे हैं कि नज़दीक से एक दो ले लो भाई जैसा अपने दोनों बेटों के फोटो लेते हो। कई दिन हो गए उधर आते जाते लेकिन नज़दीक से फ़ोटो लेने हिम्मत नही हुई। आज फिर जब मैं बाल कटा कर लौट रहा था। ऐसा लगा फूलों ने मुझे फिर से आवाज़ दिया। एक फोटो प्ल्ज़।। मैं सड़क के बाईं तरफ़ से जा रहा था। लेकिन वो आवाज़ सुनते ही मैं सड़क की दाईं तरफ़ जिधर वो जंगली फूल थे चला गया। मेरा हाथ पॉकेट पर गया। ऐसा लगा मैं मोबाइल घर पर ही छोड़ आया हूं। फिर ध्यान गया हजाम के पास जब मेरा नम्बर नही आया था उस समय भी मोबाइल ने ही मेरा साथ दिया था और उसी की मदद से समय गुज़र रहा था। तब मैंने पैंट के दूसरे जेब मे हाथ डाला मेरा मोबाइल वहीं था। मोबाइल निकाला और इधर उधर देखने लगा की कहीं कोई मुझे देख तो नही रहा? मेरी नज़र सफेद शर्ट में पास ही खड़े एक आदमी पर पड़ी। वो किसी को आवाज़ दे रहा था। मैंने जल्दी से मोबाइल कैमरा ऑन किया और जल्दी से 2-3 फ़ोटो ले कर मोबाइल को फिर से जेब मे रख कर अपने डेरा की तरफ चल पड़ा। डेरा पहुच कर मैंने अपना मोबाइल निकाला। फ़ोटो देखा । फूल सचमुच बहुत सुंदर थे। लेकिन फूल मुझे अभी भी ग़मगीन आवाज़ों में कह रहे थे। तुमने अभी भी मेरे साथ न्याय नही किया। मैं मन ही मन उससे कह रहा था। अच्छा नही लगता है लोग क्या सोचेंगे। क्या कहेंगे कि लगता है पागल हो गया है जंगल का फोटो ले रहा है। मैं मन ही मन उससे कहने लगा अभी कुछ दिन पहले मेरे पड़ोस की आंटी मेरी पत्नी से कह रही थीं ओसामा बाबू घांस का फोटो क्यों ले रहे थे? मैंने मन ही मन मे कहा लोग मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं कि खाली फ़ोटो खिंचता रहता है। मुझे एहसास हुआ कि वो जंगली फूल मुझसे कह रहे हैं। जब तुम अपने दोस्तों का फोटो लेते हो तब तुम्हारा कोई मज़ाक़ नही उड़ाता, जब तुम आलोक जी, अजय जी का, बैद्यनाथ जी प्रशांत जी का फोटो लेते हो कोई तुम्हारा मज़ाक़ नही उड़ाता? हमने कहा अरे ये तो अपने दोस्त हैं। इसमे कोई क्यों मज़ाक़ उड़ाएगा। अच्छा फिर जब तुम लड़कियों का फोटो खींचते हो तब तुम्हे बुरा नही लगता। स्टेशन, बस स्टैंड इन सब जगहों पर फ़ोटो लेना बुरा नही लगता। उस समय लज्जा नही आती। फूलों की आवाज़ मेरे मन मष्तिष्क में गूंज रही थी। वो मुझसे कह रहा था। गार्डन में फ़ोटो लेते हुए तो शर्म नही आती। तो फिर मेरा फ़ोटो खीचने में शर्म कैसा? कहीं ऐसा तो नही की मैं जंगली हूं मैं तो खुद बखुद उग गयी हूं। मेरा कोई नही है मैं बेसहारा हूं इसलिए मेरी तरफ कोई ध्यान नही। पिछले दिनों तुमने नेनुआ के फूलों का भी तो फ़ोटो लिया था। शायद इसलिए कि वो घरों में होते हैं उनका कोई रखवाला होता
है।
फूलों की इन बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। क्या हम उन्ही लोगों को पूछते हैं या इज़्ज़त देते हैं जिसका समाज मे वक़ार है। क्या बेसहारा लोगों के अंदर टैलेंट नही होता? क्या समाज के दबे कुचले लोगों के टैलेंट को सामने लाने की ज़रूरत नही??
Short Story
लेखक- ओसामा हसन
पता नही ये कौन सा फूल है। जब भी मैं अपने डेरा से निकलता हूं इसे देख कर खुश हो जाता हूं। सोचने लगता हूं। इस जंगल का फूल भी इतना खूबसूरत है। लेकिन फूल शायद मुझे देख कर कभी खुश नही होता। जब भी मैं उधर से गुजरता और फूलों को देखता ऐसा लगता फूल मुझे कह रहा हो "मेरी भी एक फोटो ले लो। सारी दुनिया की फ़ोटो लेते हो मेरी क्यों नही। क्या मैं देखने मे सूंदर नही। क्या मुझे देख कर लोगों को खुशी नही मिलती? क्या फेसबुक पर मुझे लाइक नही मिलेगा" मैंने कई बार मोबाइल निकालने की कोशिश की लेकिन ये सोच कर की आते जाते लोग क्या कहेंगे। मैं अपनी मोबाइल को फिर से पॉकेट में रख लेता। जब भी मैं मोबाइल निकालता मुझे एहसास होता कि ये जंगली फूल मुझे कह रहे हों शाबाश। लेकिन फूलों की शाबाशी पर ये बात भारी पड़ जाती की लोग क्या कहेंगे। एक बार मैंने धीरे से मोबाइल फ़ोटो खीचने की गर्ज़ से निकाला दूर से ही चुपचाप फ़ोटो ले लिया। घर पर आकर जब फ़ोटो देखा तो दूर से भी पिले फूल जो हरे पत्तों के ऊपर थे बहुत सुंदर लग रहे थे। लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि ये फूल मुझे कह रहे हैं कि नज़दीक से एक दो ले लो भाई जैसा अपने दोनों बेटों के फोटो लेते हो। कई दिन हो गए उधर आते जाते लेकिन नज़दीक से फ़ोटो लेने हिम्मत नही हुई। आज फिर जब मैं बाल कटा कर लौट रहा था। ऐसा लगा फूलों ने मुझे फिर से आवाज़ दिया। एक फोटो प्ल्ज़।। मैं सड़क के बाईं तरफ़ से जा रहा था। लेकिन वो आवाज़ सुनते ही मैं सड़क की दाईं तरफ़ जिधर वो जंगली फूल थे चला गया। मेरा हाथ पॉकेट पर गया। ऐसा लगा मैं मोबाइल घर पर ही छोड़ आया हूं। फिर ध्यान गया हजाम के पास जब मेरा नम्बर नही आया था उस समय भी मोबाइल ने ही मेरा साथ दिया था और उसी की मदद से समय गुज़र रहा था। तब मैंने पैंट के दूसरे जेब मे हाथ डाला मेरा मोबाइल वहीं था। मोबाइल निकाला और इधर उधर देखने लगा की कहीं कोई मुझे देख तो नही रहा? मेरी नज़र सफेद शर्ट में पास ही खड़े एक आदमी पर पड़ी। वो किसी को आवाज़ दे रहा था। मैंने जल्दी से मोबाइल कैमरा ऑन किया और जल्दी से 2-3 फ़ोटो ले कर मोबाइल को फिर से जेब मे रख कर अपने डेरा की तरफ चल पड़ा। डेरा पहुच कर मैंने अपना मोबाइल निकाला। फ़ोटो देखा । फूल सचमुच बहुत सुंदर थे। लेकिन फूल मुझे अभी भी ग़मगीन आवाज़ों में कह रहे थे। तुमने अभी भी मेरे साथ न्याय नही किया। मैं मन ही मन उससे कह रहा था। अच्छा नही लगता है लोग क्या सोचेंगे। क्या कहेंगे कि लगता है पागल हो गया है जंगल का फोटो ले रहा है। मैं मन ही मन उससे कहने लगा अभी कुछ दिन पहले मेरे पड़ोस की आंटी मेरी पत्नी से कह रही थीं ओसामा बाबू घांस का फोटो क्यों ले रहे थे? मैंने मन ही मन मे कहा लोग मेरा मज़ाक़ उड़ाते हैं कि खाली फ़ोटो खिंचता रहता है। मुझे एहसास हुआ कि वो जंगली फूल मुझसे कह रहे हैं। जब तुम अपने दोस्तों का फोटो लेते हो तब तुम्हारा कोई मज़ाक़ नही उड़ाता, जब तुम आलोक जी, अजय जी का, बैद्यनाथ जी प्रशांत जी का फोटो लेते हो कोई तुम्हारा मज़ाक़ नही उड़ाता? हमने कहा अरे ये तो अपने दोस्त हैं। इसमे कोई क्यों मज़ाक़ उड़ाएगा। अच्छा फिर जब तुम लड़कियों का फोटो खींचते हो तब तुम्हे बुरा नही लगता। स्टेशन, बस स्टैंड इन सब जगहों पर फ़ोटो लेना बुरा नही लगता। उस समय लज्जा नही आती। फूलों की आवाज़ मेरे मन मष्तिष्क में गूंज रही थी। वो मुझसे कह रहा था। गार्डन में फ़ोटो लेते हुए तो शर्म नही आती। तो फिर मेरा फ़ोटो खीचने में शर्म कैसा? कहीं ऐसा तो नही की मैं जंगली हूं मैं तो खुद बखुद उग गयी हूं। मेरा कोई नही है मैं बेसहारा हूं इसलिए मेरी तरफ कोई ध्यान नही। पिछले दिनों तुमने नेनुआ के फूलों का भी तो फ़ोटो लिया था। शायद इसलिए कि वो घरों में होते हैं उनका कोई रखवाला होता
है।
फूलों की इन बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। क्या हम उन्ही लोगों को पूछते हैं या इज़्ज़त देते हैं जिसका समाज मे वक़ार है। क्या बेसहारा लोगों के अंदर टैलेंट नही होता? क्या समाज के दबे कुचले लोगों के टैलेंट को सामने लाने की ज़रूरत नही??
Pure soul.. That can listen the pain of a wild flower... That can inspire us to pay attention the unnoticed living beings... 👌
ReplyDeleteEvery thing in the world keeps importance and having some unique hidden quality .. As a human being we should respect all and should noticed to unnoticed..
DeleteYep.. Great... Demands appreciation 👌.. Very few ppl.. Who can notice or express it beautiful..
DeleteHeart touching, we should work for all and we have got a good platform. It will give inner satisfaction
ReplyDeleteInner satisfactions is more important than anything else...
DeleteBARA HI SHANDAR LIKHA HAI AAP NE PHULON K MANKI BAAT
ReplyDeleteShukriya.. ye sirf phoolon ke man ki bat nahi un sab ke man ki bat hai jise samajik taur par heen bhavna se dekha jata hai.. unhe sirf isliye andekha kiya jata hai ki wo garib hain
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