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Showing posts from July, 2020

छोटे कारोबारियों को मिल सकता है 50 हज़ार से 10 लाख तक का मुद्रा लोन।

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कोरोना के प्रभाव के कारण बड़े शहरों में काम करने वाले  बड़ी संख्या में अपने घर लौट कर आए हैं। इनमे से अधिकतर अब अपने गांव में रह कर कुछ काम करना चाहते हैं। लेकिन काम शुरू करने के लिए उनके पास पैसे नही हैं। जीविका समूह से जुड़े परिवार समूह से ऋण ले कर काम शुरू कर रहे हैं। लेकिन उन्हें अपने काम को बढ़ाने के लिए और अधिक फण्ड की आवश्यकता होती है। ऐसे लोगों को घबराने की अवष्यकता नही है। इस पोस्ट और अगले कुछ पोस्ट में हम मुद्रा लोन के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे ताकि अच्छे से इसके बारे में समझ बम जाए। अति छोटे, छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए मुद्रा काफी सही लोन है। आइए जानते हैं मुद्रा लोन क्या है। मुद्रा लोन क्या है? माइक्रो-यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (MUDRA) लोन उन प्रमुख उपायों में से एक है जिसे भारत सरकार ने अति-छोटे, छोटे और मध्यम उद्यमों (MSMe) को राष्ट्रव्यापी रूप से बढ़ावा देने के लिए शुरू किया है। मुद्रा लोन योजना, मुद्रा बैंक योजना या  प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) के रूप में भी जानी जाती है, ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की पहल के बाद इस पर अधिक ध्यान दिया गया है। योजना के

लॉकडाउन में जॉब गवां चुके मोहम्मद सद्दाम अब दूसरों को दे रहे हैं जॉब

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*लॉकडाउन में जॉब गवां चुके मोहम्मद सद्दाम अब दूसरों को दे रहे हैं जॉब* ताजपुर, समस्तीपुर (बिहार) के मुरादपुर बंगरा निवासी मोहम्मद सद्दाम जो स्नातक पास हैं और दिल्ली में सिलाई का काम करते थे लॉकडाउन के कारण अपनी जॉब गवां चुके थे । किसी तरह दिल्ली से अपने घर वापस आए। पिछले 2 महीने से अपने घर पर ही बैठे थे और कुछ काम करना चाहते थे। लेकिन  पैसे की कमी के कारण कुछ कर नही पा रहे थे। वो स्थानीय बैंक में भी मुद्रा लोन केलिए जा चुके थे लेकिन वहां भी उन्हें निराशा हाथ लगी। इसी बीच मुरादपुर बंगरा पंचायत में माइग्रेंट वर्कर के साथ दो बैठक हुई। इसकी सूचना सद्दाम को भी दी गयी। सद्दाम को जब पता चला कि उसके काम के लिए जीविका से मदद मिल सकती है तब वो जीविका कार्यलय पर आए और उन्होंने अपना प्लान बताया तब उनका प्रोफाइल भर कर *इस्लामिया जीविका SHG* ( जिसमे सद्दाम की माँ सदस्य हैं) बैठक की गई और समूह से उन्हें कम शुरू करने के लिए 50 हज़ार का ऋण आसानी से मिल गया। अब उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया  है। सद्दाम ने अपने साथ 3और लोगों को काम दिया है। वो #लेडीजकुर्ती बना रहे हैं और आर्डर के इंतेज़ार में हैं

बांस कलाकारों को नही मिल रहा बाजार: जानिए कुमारी किरण की कहानी

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इनसे मिलिए ये हैं कुमारी किरण। ताजपुर प्रखण्ड के हरिशंकरपुर पंचायत की निवासी हैं।कलाकार हैं और  बाँस को इज़्ज़त देती हैं। यानी कुमारी किरण बांस के सुंदर सुंदर समान बनाती हैं। ये इनका खानदानी पेशा है। इन्होंने अपने पिता जी से इस काम को सीखा था। शादी के बाद उन्होंने काम को करना कम कर दिया। या यूं कहें कि इस काम को करना बंद ही कर दिया था। इनके पास न तो पूंजी थी और न ही इसे बेचने के लिए बाजार। लेकिन जब ताजपुर (समस्तीपुर, बिहार) में जीविका आई तो इनके लिए वरदान साबित हुआ। कुमारी किरण ने सबसे पहले जीविका समूह में सदस्य के रूप में जॉइन किया। फिर वो जीविका में कम्युनिटी मोबीलाइज़र (जीविका मित्र) बनी ताकि कुछ पैसा अर्जित कर सकें। समूह से ऋण लेकर उन्होंने किराने की दुकान खोली। लेकिन जीविका के प्रखण्ड स्तरीय कर्मचारियों को पता चला कि ये बहुत अच्छी कलाकार हैं। तो उन्हें मोटीवेट कर अपना काम शुरू करने के लिए कहा। कुमारी किरण ने काम शुरू किया और जीविका के माध्यम से मेले में भी जाने लगीं जिससे उनके कलाकारी को सराहना मिली और घर की आर्थिक तंगी भी खत्म होने लगी। लेकिन साल 2020 कुमारी किरण और उनके परिवार

अगर बकरी पलकों को नही मिला बाजार तो क्या हो सकता है अर्थव्यवस्था पर असर।

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बकरी पालन गरीब ग्रामीण परिवार का शुरू से एक मत्त्वपूर्ण जीविकोपार्जन का साधन रहा है। एक से कम एक बकरा हर परिवार में देखने को मिल जाएगा। इसे गरीबों का ATM भी कहा जाता है। जब भी ज़रूरत हुई इसे बेच लिया और अपनी जरूरत को पूरा कर लिया। कई लोग बकरीद के लिए खास कर बकरा पालते हैं। एक साल दो साल से इसकी सेवा करते हैं कि बकरीद के समय मे इसकी अच्छी कीमत मिल जाएगी। और अक्सर मिल भी जाती है। कोरोना के कारण लॉकडाउन से पहले ही ग्रामीण अर्थव्यस्था की हालत खस्ता है। काम नही मिलने के कारण ग्रामीणों की खरीदने की क्षमता घटती जा रही है। लॉकडाउन खुलने से धीरे धीरे मार्किट में चहल पहल आ रही थी। लेकिन इस चहल पहल के साथ कोरोना ने भी अपना प्रसार बढ़ा लिया। मजबूरी में बिहार सरकार को फिर से लॉकडाउन करना पड़ा। लेकिन इस लॉकडाउन से उन गरीबों के बकरों का क्या होगा जो उन्होंने साल दो साल से बकरीद के लिए पाल पोस कर रखा था? क्या ये अपने बकरों को बेच पाएंगे? अगर बेच भी पाए तो क्या उन्हें इन बकरों का सही कीमत मिल पायेगा? सरकार को इनके लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए ताकि इन्हें अपने बकरों का सही कीमत मिल सके। अगर ग्रा