मेरे स्टूडेंट ही मेरा संदेश हैं: मास्टर ग़ुलाम फ़रीद
मेरे स्टूडेंट ही मेरा संदेश हैं: मास्टर ग़ुलाम फ़रीद
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शक्ल और पहनावे से साधारण से दिखने वाले असाधारण व्यक्तित्व के मालिक मास्टर गुलाम फरीद दरभंगा हेड क्वार्टर से 35 किलोमीटर दूर प्रखण्ड अलीनगर, दरभंगा (बिहार) के निवासी हैं। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने वालिद (पिता) श्री मंज़ूर हसन के पेशा को अपनाया। मंज़ूर हसन पेशे से शिक्षक थे। उन्होंने न सिर्फ अलीनगर बल्कि आस पास के इलाके के बच्चों को उस समय शिक्षा दी जब शिक्षा विरले ही किसी को मिलती थी। मंज़ूर हसन फ़ारसी और उर्दू के मशहूर शिक्षक थे। उर्दू और फ़ारसी अदब (साहित्य) पर उनकी मजबूत पकड़ थी।
ग़ुलाम फरीद ने अपने पेशे की शुरुआत उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले से की। उस समय उनके बड़े भाई मंसूर हसन गोरखपुर में रेलवे में मोलाज़िम थे। गोरखपुर के जनता इंटर कॉलेज में बतौर गणित और विज्ञान के शिक्षक के अपनी मोलाज़मत शुरू की। पढ़ाने के स्टाइल के कारण कुछ ही दिनों में वो कॉलेज में प्रसिद्ध हो गए। 1979 में बिहार में सरकारी नौकरी मिल जाने के कारण वो अपने पैतृक गांव अलीनगर वापस आ गए और पोहद्दी हाई स्कूल में गणित और विज्ञान के शिक्षक के तौर पर पढ़ाने लगे। लेकिन जनता इंटर कॉलेज उन्हें भूल नही पाया। गोरखपुर छोड़ने के 6 साल के बाद 1985 में जनता इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल श्री केदारनाथ यादव पोहद्दी हाई स्कूल पहुच गए। इतने दुर्गम जगह पर गोरखपुर से पहुच जाना इतना आसान नही था। स्कूल के प्रिंसिपल साहेब को बहुत हैरानी हुई। उन्होंने केदारनाथ जी से पूछ लिया आपके इस जगह पर आने का क्या मकसद है। उन्होंने कहा गुलाम फ़रीद मेरे बेटे के समान था। इसकी याद मुझे बहुत सताती थी। मैं हमेशा सोचता था न जाने फ़रीद किस हालत में है। मैं यही देखने आया था कि फ़रीद कैसा है। चलते समय केदारथा जी ने कहा असल मे मैं फ़रीद को लेने के लिए आया था। लेकिन वो अच्छी जगह पर है। अब मैं संतुष्ट हूं। फ़रीद एक अच्छा शिक्षक है।
गुलाम फ़रीद साहेब में पढ़ने पढ़ाने का शौक़ खानदानी था । घर पर आने के बाद उन्होंने घर पर भी बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। दूर दूर से बच्चे पढ़ने के लिए आते थे। बच्चों को आने जाने में परेशानी को देखते हुए उन्होंने घर पर बच्चों के रहने का इंतेज़ाम कर दिया। अब स्टूडेंट घर पर रह कर पढ़ाई करने लगे। इसके लिए उन्होंने अलग से कोई पैसा नही लिया। उन्होंने शिक्षा को कभी भी धन अर्जन का।माध्यम नही बनाया। स्टूडेंट को उतना ही पैसा देना होता था जो खाने का खर्च आता था। इलाके के गरीब परिवार के बच्चों के लिए ये होस्टल वरदान से कम नही था। इस होस्टल की एक खास बात ये थी कि इसमे सभी धर्म के बच्चे बिना किसी भेदभाव के पढ़ते थे। शिक्षा सबके लिए मुफ़्त थी। मास्टर ग़ुलाम फरीद ने इलाके के बच्चों को न सिर्फ शिक्षा बल्कि दिक्षा भी दिया। मास्टर ग़ुलाम फ़रीद साहेब के स्टूडेंट आज हर क्ष्रेत्र में अपने परिवार और समाज का नाम रौशन कर रहे हैं।
मास्टर गुलाम फ़रीद शिक्षक के साथ साथ उर्दू और फ़ारसी साहित्य के अच्छे जानकार हैं। उर्दू के शायर भी हैं। नकूशे अलीनगर मास्टर गुलाम फ़रीद की मशहूर किताब है। इस किताब में अलीनगर के साहित्यिक और सांस्कृतिक इतिहास कि जानकारी मिलती है। शिक्षक और शायर के साथ साथ मास्टर गुलाम फ़रीद उस इलाके के सोशल रिफॉर्मर भी हैं। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उन्होंने अपने इलाके के लोगों को हमेशा जागरूक किया।
अपने नौकरी के आखरी समय मे हेड मास्टर बने और इसी पद से 2012 में रिटायर हो गए। रिटायरमेंट के बाद भी पढ़ने पढ़ाने का काम चालू रखा। लेकिन सेहत ने हमेशा साथ नही दिया।डाईबेटिक हो गए हैं इसलिए अब सिर्फ पढ़ते हैं पढ़ाने का काम छोड़ चुके हैं। होस्टल भी बंद हो चुका है। उन्होंने एक मदरसा क़ायम किया था अब उस मदरसे की देख भाल करते हैं।
हमने मास्टर गुलाम फ़रीद साहेब से बात किया और उनसे कहा कि आपका वीडियो बनाना चाहते हैं। आपका संदेश रिकॉर्ड करना चाहते हैं। उन्होंने जवाब दिया मेरे स्टूडेंट ही मेरा संदेश हैं। जिन्होंने मुझसे शिक्षा हासिल की है अब उनकी जिम्मेदारी है कि शिक्षा को आगे बढ़ाएं।
ये पोस्ट मैं अपनी जानकारी के अनुसार लिख रहा हूं। मैं कभी भी इनका स्टूडेंट नही रह हूं। अगर उनके स्टूडेंट तक पहुचे तो इसमे इज़ाफ़ा कर सकते हैं। अगर किसी के पास कुछ अच्छी यादें हो तो कमेंट बॉक्स में ज़रूर शेयर करें।
#शिक्षा_सत्याग्रह
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शक्ल और पहनावे से साधारण से दिखने वाले असाधारण व्यक्तित्व के मालिक मास्टर गुलाम फरीद दरभंगा हेड क्वार्टर से 35 किलोमीटर दूर प्रखण्ड अलीनगर, दरभंगा (बिहार) के निवासी हैं। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने वालिद (पिता) श्री मंज़ूर हसन के पेशा को अपनाया। मंज़ूर हसन पेशे से शिक्षक थे। उन्होंने न सिर्फ अलीनगर बल्कि आस पास के इलाके के बच्चों को उस समय शिक्षा दी जब शिक्षा विरले ही किसी को मिलती थी। मंज़ूर हसन फ़ारसी और उर्दू के मशहूर शिक्षक थे। उर्दू और फ़ारसी अदब (साहित्य) पर उनकी मजबूत पकड़ थी।
ग़ुलाम फरीद ने अपने पेशे की शुरुआत उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले से की। उस समय उनके बड़े भाई मंसूर हसन गोरखपुर में रेलवे में मोलाज़िम थे। गोरखपुर के जनता इंटर कॉलेज में बतौर गणित और विज्ञान के शिक्षक के अपनी मोलाज़मत शुरू की। पढ़ाने के स्टाइल के कारण कुछ ही दिनों में वो कॉलेज में प्रसिद्ध हो गए। 1979 में बिहार में सरकारी नौकरी मिल जाने के कारण वो अपने पैतृक गांव अलीनगर वापस आ गए और पोहद्दी हाई स्कूल में गणित और विज्ञान के शिक्षक के तौर पर पढ़ाने लगे। लेकिन जनता इंटर कॉलेज उन्हें भूल नही पाया। गोरखपुर छोड़ने के 6 साल के बाद 1985 में जनता इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल श्री केदारनाथ यादव पोहद्दी हाई स्कूल पहुच गए। इतने दुर्गम जगह पर गोरखपुर से पहुच जाना इतना आसान नही था। स्कूल के प्रिंसिपल साहेब को बहुत हैरानी हुई। उन्होंने केदारनाथ जी से पूछ लिया आपके इस जगह पर आने का क्या मकसद है। उन्होंने कहा गुलाम फ़रीद मेरे बेटे के समान था। इसकी याद मुझे बहुत सताती थी। मैं हमेशा सोचता था न जाने फ़रीद किस हालत में है। मैं यही देखने आया था कि फ़रीद कैसा है। चलते समय केदारथा जी ने कहा असल मे मैं फ़रीद को लेने के लिए आया था। लेकिन वो अच्छी जगह पर है। अब मैं संतुष्ट हूं। फ़रीद एक अच्छा शिक्षक है।
गुलाम फ़रीद साहेब में पढ़ने पढ़ाने का शौक़ खानदानी था । घर पर आने के बाद उन्होंने घर पर भी बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। दूर दूर से बच्चे पढ़ने के लिए आते थे। बच्चों को आने जाने में परेशानी को देखते हुए उन्होंने घर पर बच्चों के रहने का इंतेज़ाम कर दिया। अब स्टूडेंट घर पर रह कर पढ़ाई करने लगे। इसके लिए उन्होंने अलग से कोई पैसा नही लिया। उन्होंने शिक्षा को कभी भी धन अर्जन का।माध्यम नही बनाया। स्टूडेंट को उतना ही पैसा देना होता था जो खाने का खर्च आता था। इलाके के गरीब परिवार के बच्चों के लिए ये होस्टल वरदान से कम नही था। इस होस्टल की एक खास बात ये थी कि इसमे सभी धर्म के बच्चे बिना किसी भेदभाव के पढ़ते थे। शिक्षा सबके लिए मुफ़्त थी। मास्टर ग़ुलाम फरीद ने इलाके के बच्चों को न सिर्फ शिक्षा बल्कि दिक्षा भी दिया। मास्टर ग़ुलाम फ़रीद साहेब के स्टूडेंट आज हर क्ष्रेत्र में अपने परिवार और समाज का नाम रौशन कर रहे हैं।
मास्टर गुलाम फ़रीद शिक्षक के साथ साथ उर्दू और फ़ारसी साहित्य के अच्छे जानकार हैं। उर्दू के शायर भी हैं। नकूशे अलीनगर मास्टर गुलाम फ़रीद की मशहूर किताब है। इस किताब में अलीनगर के साहित्यिक और सांस्कृतिक इतिहास कि जानकारी मिलती है। शिक्षक और शायर के साथ साथ मास्टर गुलाम फ़रीद उस इलाके के सोशल रिफॉर्मर भी हैं। सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ उन्होंने अपने इलाके के लोगों को हमेशा जागरूक किया।
अपने नौकरी के आखरी समय मे हेड मास्टर बने और इसी पद से 2012 में रिटायर हो गए। रिटायरमेंट के बाद भी पढ़ने पढ़ाने का काम चालू रखा। लेकिन सेहत ने हमेशा साथ नही दिया।डाईबेटिक हो गए हैं इसलिए अब सिर्फ पढ़ते हैं पढ़ाने का काम छोड़ चुके हैं। होस्टल भी बंद हो चुका है। उन्होंने एक मदरसा क़ायम किया था अब उस मदरसे की देख भाल करते हैं।
हमने मास्टर गुलाम फ़रीद साहेब से बात किया और उनसे कहा कि आपका वीडियो बनाना चाहते हैं। आपका संदेश रिकॉर्ड करना चाहते हैं। उन्होंने जवाब दिया मेरे स्टूडेंट ही मेरा संदेश हैं। जिन्होंने मुझसे शिक्षा हासिल की है अब उनकी जिम्मेदारी है कि शिक्षा को आगे बढ़ाएं।
ये पोस्ट मैं अपनी जानकारी के अनुसार लिख रहा हूं। मैं कभी भी इनका स्टूडेंट नही रह हूं। अगर उनके स्टूडेंट तक पहुचे तो इसमे इज़ाफ़ा कर सकते हैं। अगर किसी के पास कुछ अच्छी यादें हो तो कमेंट बॉक्स में ज़रूर शेयर करें।
#शिक्षा_सत्याग्रह
Nice
ReplyDeleteBahut achche shikshak hain
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