दीदी की नर्सरी(मुख्यमंत्री निजी पौधशाला योजना) से रेखा को मिली एक नई पहचान
सफलता की कहानी......
दीदी की नर्सरी (मुख्यमंत्री निजी पौधशाला योजना)से रेखा को मिली एक नई पहचान
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पर्यावरण संरक्षण के साथ आर्थिक सशक्तीकरण की तरफ बढ़ाया कदम।
बिहार के समस्तीपुर जिले का एक महत्वपूर्ण प्रखंड है मोरवा। मोरवा प्रखंड के निकसपुर के रेखा देवी की अपनी आज अलग पहचान है। कल तक रेखा देवी एक सामान्य घरेलू महिला थीं, जो आर्थिक कठिनाईयों का सामना कर रही थीं। पति खेती, मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे थे | परन्तु आर्थिक तंगी के कारण वे अपना मानसिक संतुलन खो बैठे जिसके कारण रेखा देवी पति का इलाज व बच्चो के परवरिश को लेकर बहुत परेशान, लाचार व् विवश थी । प्रकृति का नियम है कि हर अंधेरी रात के बाद सुबह निश्चित रूप से होती है। ठीक ऐसा ही हुआ रेखा देवी के साथ। उनके स्याह जीवन के बदलाव की स्वर्णिम सुबह जीविका के साथ जुड़ने से हुई। जीविका के साथ बीत रहा हर क्षण रेखा देवी में आए सकारात्मक बदलाव का कारण बना। जीविका की मदद एवं रेखा के प्रयास के कारण आज रेखा का जीवन पूरी तरह बदल गया है। रेखा 2014 में पहली वार घर से बाहर आ कर जीविका में ग्राम साधन सेवी के रूप में काम करना चालू किया खेती के उन्नत कृषि तकनिक में प्रशिक्षित होने के साथ साथ खेती में रूचि बढ़ता गया जिससे खेती को फायदा का धंधा बनाने के उद्देश्य से पारंपरिक खेती को छोड़कर उन्नत खेती करना शुरू किया और पति का ईलाज के साथ ही साथ आर्थिक स्थिति में सुधार लाया |
इसी दौरान रेखा को यह जानकारी मिली कि बिहार सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के द्वारा कुछ शर्तों के साथ जीविका दीदियों को ”दीदी की नर्सरी” योजना का लाभ दिया जा रहा है। जीविका के प्रयासों के बाद रेखा देवी को मुख्यमंत्री निजी पौधशाला के अंतर्गत दीदी की नर्सरी का संचालन का मौका मिला। अब रेखा देवी पति नरेन्द्र कुमार सिंह के सहयोग से कार्यों को बेहतर तरीके से अंजाम दे रही हैं। रेखा देवी बताती हैं कि- ‘जब मेरा चयन दीदी की नर्सरी के लिए हुआ तो मेरे खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मुझे लगा कि मेरे सपने के सच होने का वक्त आ गया है। फिर हमलोगों ने विभाग के सहयोग से अक्टूबर 2019 में कार्य आरंभ किया। कार्य आरंभ करने के दौरान ही विभाग द्वारा मुझे प्रशिक्षण भी दिया गया।‘
रेखा आगे कहती हैं कि-साढ़े चार कट्ठे के प्लाट को पहले मैंने नर्सरी के लिए तैयार किया। जिसका निरीक्षण विभाग के अधिकारियों द्वारा किया गया। फिर उसमें मैंने बीस हजार पौधा लगाया। जो मुख्यतः महोगनी, सागवान, अर्जून, गम्हार पुत्रजीवा आदि का पौधा था। इस पूरी प्रक्रिया के साथ ही मार्च 2020 में मुझे विभाग के द्वारा उक्त नर्सरी के संचालन की प्रथम किस्त के रूप में 40 फीसदी राशि यानि 88 हजार रूपया मेरे खाते में उपलब्ध करवाया गया। राशि मिलने के बाद मेरे जान में जान आई क्योंकि अब तक मैंने काफी पैसा नर्सरी पर खर्च कर दिया था। रेखा आगे बताती हैं कि अभी उनकी नर्सरी में 20000 हजार से ज्यादा पौधा सुरक्षित है, जिसे विभाग द्वारा अगस्त के चौथे सप्ताह से खरीदने की प्रक्रिया आरंभ कर दी गयी है। विभाग द्वारा पौधों को तीन श्रेणी में विभक्त कर उसकी खरीददारी की जा रही है और बेहतर पौधा को लगभग 11 रूपया 50 पैसा की दर से खरीदा जा रहा है। रेखा को विश्वास है कि उनके पौधों की अच्छी कीमत मिलेगी और उन्हें कम से कम डेढ़ लाख रूपया और मिलेगा। रेखा कहती हैं कि यही पैसा मेरी आमदनी होगी। उनके अनुसार इस पूरी प्रक्रिया जो करीब-करीब छह माह की है में उन्हें लगभग डेढ़ लाख की आमदनी हो जाएगी। वो कहती हैं कि अब मेरे सपने पूरे होने का वक्त आ गया है। रेखा कहती हैं कि आज मैं जो भी हूं उसका सारा श्रेय जीविका को जाता है। अगर मैं जीविका से नहीं जुड़ी होती तो शायद मेरे सारे सपने मेरे आंखों में ही रह जाते, वो सपने कभी भी हकीकत नहीं बन पाते । पर अब ऐसा नहीं है मेरे सपनों के पूरा होने का वक्त आ गया है। यह कहते हुए रीना को देखना उनके बढ़ चुके आत्मविश्वास को प्रतिबिम्बत करता है।
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