मानसिक रूप से विक्षिप्त और बेसहारा लोगों को मिले उनका अधिकार
मानसिक रूप से विक्षिप्त और बेसहारा लोगों को मिले उनका अधिकार
आज जब मैं टाटानगर जमशेदपुर रेलवे स्टेशन से समस्तीपुर का टिकट ले कर बाहर निकला और साकची जाने वाली ऑटो के लिए खड़ा था तभी मेरी नज़र दो व्यक्ति पर पड़ती है। इनमे से एक पुरुष और दूसरी महिला थी। पुरुष जिसका दाढ़ी बढ़ा है और हांथ में कोई कागज़ के टुकड़ा लिए देख रहा है। शायद अपनी तकदीर पढ़ रहा हो। दूसरी महिला थी और उसके पास अखबार और कुछ कागज़ बिखड़े पड़े थे। देख कर ही लग रहा था कि ये दोनो मानसिक रूप से विक्षिप्त और बेसहारा हैं। जब भी ऐसे बेसहारा लोगों को देखता हूं दिल दहल जाता है और मन विचलित हो उठता है।
लगभग हर शहर में मानसिक रूप से विक्षिप्त और बेसहारा लोग मिल जाएंगे। चुकी मेरा बचपन समस्तीपुर में बीता है मैंने समस्तीपुर स्टेशन के आस पास ऐसे लोगों को बहुत देखा है। जब भी इन्हें देखता ख्याल आता पता नही समस्तीपुर में ये कहाँ से चले आते हैं? क्या इनका कोई परिवार नही होता? क्या इन्हें इनके परिवार वाले नही खोजते? ये सब सोच कर दिल दिल घबरा जाता था।
लेकिन धीरे धीरे पता चला ये हर शहर की कहानी है। ये हर शहर में मिल जाते हैं। समस्तीपुर में अधिकता का कारण एक ये हो सकता था कि समस्तीपुर जंक्शन है और यहां सभी तरफ की ट्रेनें आतीं हैं। पहले इनकी संख्या बहुत कम होती थी। लेकिन धीरे धीरे इनकी संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। जो दिख जाता है।
मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति को समाज का बोझ समझा जाता है। पहले तो घर वाले इसे समाज से छिपाते हैं ।उनका इलाज सही ढंग से नही कराते। लेकिन जब बीमारी बढ़ जाती है और इससे बदनामी होने के डर से इन्हें छोड़ दिया जाता है। या ओहिर वो खुद भटक कर ऐसी जगह चले जाते हैं जहां से उनकी लाश तक नही आ पाती है। घर वाले भी इन्हें ये समझ कर छोड़ देते हैं कि अब इनसे उनका कोई फायदा नही और समाज मे उनकी नाक कट रही है।
घर दूर किसी अनजान जगह पर पहुच कर स्टेशन, बस स्टैंड जैसी जगह इनका पनाह लेते हैं। इनमे महिला भी होती हैं और पुरुष भी। मानसिक रूप से विक्षिप और बेसहारा महिलाओं पर हवसी दरिंदों की नज़र भी होती है। और कई बार उनके साथ दुष्कर्म की कोशिश भी होती है। कुछ महीने पहले ताजपुर में भी हल्ला हुआ था कि मानसिक रूप से विक्षिप महिला के साथ किसी ने दुष्कर्म की कोशिश की लेकिन हल्ला होने पर वो दरिंदा भाग गया। इनकी म्रत्यु बीमारी के बहुत ज़्यादा बढ़ जाने, कभी सड़क हैंडसम तो कभी भीड़ द्वारा बच्चा चोरी के नाम पर कर दी जाती है। कुछ दिनों पहले समस्तीपुर के एक गांव में बच्चा चोरी के नाम पर बहुत पिटाई की। स्टेशन मास्टर ने उसे बचाया।
लगभग हर शहर में मानसिक रूप से विक्षिप्त और बेसहारा लोग मिल जाएंगे। चुकी मेरा बचपन समस्तीपुर में बीता है मैंने समस्तीपुर स्टेशन के आस पास ऐसे लोगों को बहुत देखा है। जब भी इन्हें देखता ख्याल आता पता नही समस्तीपुर में ये कहाँ से चले आते हैं? क्या इनका कोई परिवार नही होता? क्या इन्हें इनके परिवार वाले नही खोजते? ये सब सोच कर दिल दिल घबरा जाता था।
लेकिन धीरे धीरे पता चला ये हर शहर की कहानी है। ये हर शहर में मिल जाते हैं। समस्तीपुर में अधिकता का कारण एक ये हो सकता था कि समस्तीपुर जंक्शन है और यहां सभी तरफ की ट्रेनें आतीं हैं। पहले इनकी संख्या बहुत कम होती थी। लेकिन धीरे धीरे इनकी संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। जो दिख जाता है।
मानसिक बीमारी वाले व्यक्ति को समाज का बोझ समझा जाता है। पहले तो घर वाले इसे समाज से छिपाते हैं ।उनका इलाज सही ढंग से नही कराते। लेकिन जब बीमारी बढ़ जाती है और इससे बदनामी होने के डर से इन्हें छोड़ दिया जाता है। या ओहिर वो खुद भटक कर ऐसी जगह चले जाते हैं जहां से उनकी लाश तक नही आ पाती है। घर वाले भी इन्हें ये समझ कर छोड़ देते हैं कि अब इनसे उनका कोई फायदा नही और समाज मे उनकी नाक कट रही है।
घर दूर किसी अनजान जगह पर पहुच कर स्टेशन, बस स्टैंड जैसी जगह इनका पनाह लेते हैं। इनमे महिला भी होती हैं और पुरुष भी। मानसिक रूप से विक्षिप और बेसहारा महिलाओं पर हवसी दरिंदों की नज़र भी होती है। और कई बार उनके साथ दुष्कर्म की कोशिश भी होती है। कुछ महीने पहले ताजपुर में भी हल्ला हुआ था कि मानसिक रूप से विक्षिप महिला के साथ किसी ने दुष्कर्म की कोशिश की लेकिन हल्ला होने पर वो दरिंदा भाग गया। इनकी म्रत्यु बीमारी के बहुत ज़्यादा बढ़ जाने, कभी सड़क हैंडसम तो कभी भीड़ द्वारा बच्चा चोरी के नाम पर कर दी जाती है। कुछ दिनों पहले समस्तीपुर के एक गांव में बच्चा चोरी के नाम पर बहुत पिटाई की। स्टेशन मास्टर ने उसे बचाया।
एक बार जब मैं ताजपुर से समस्तीपुर ट्रैन पकड़ने जा रहा था। भोला टॉकीज गुमती के पास काफी जाम लगा था। जहाँ मेरा ऑटो खड़ा था वहीं पर एक विक्षिप्त व्यक्ति अपनी आखरी सांसे गीन रहा था। काफ़ी लोग उधर से गुज़र रहे थे। लेकिन शायद सब यही सोच रहे होंगे कि कोई इसे उठा कर ले जाएगा। जब काफ़ी देर हो गया और जाम भी खत्म हो गया था मेरा ऑटो चलने ही वाला था तभी मैं ऑटो से उतर गया। और निश्चय किया कि उसे हॉस्पिटल लेकर जाऊंगा। लेकिन कोई रिक्शा या ऑटो उसे उठाने के लिए तैयार नही था। पास के ही एक भले मानुस ने मेरी मदद की और रिक्शा को रोक कर उसे बिठाया। बड़ी मुश्किल से मैं उसे लेकर जिला अस्पताल पहुचा। अच्छी बात ये हुई कि अस्पताल के लोगों ने तुरंत उसका इलाज शुरू किया। उस घटना के बाद उस विक्षिप्त व्यक्ति को कभी समस्तीपुर में नही देखा। अक्सर सोचता हूं शायद मर गया होगा।
कहने का मकसद है कि संख्या में कम इनलोगों भले ही वोट का अधिकार न हो। भले ही इनके अंदर राजनीतिक रूप से किसी को फ़ायदा पहुचाने की ताकत न हो। लेकिन होते तो इंसान ही हैं। और हर इंसान को गरिमा के साथ ज़िंदगी गुज़ारने का अधिकार (Right o life with dignity) है।
हालांकि समाज के हर तबके के लिए सरकारी परियोजनाएं मौजूद हैं। ऐसे लोगों के लिए भी ज़रूर होगी। लेकिन मुझे मालूम नही है। अगर आप मे से किसी को मालूम हो तो ज़रूर बताएँ। ऐसे लोगों के रिहैबिलिटेशन सेंटर होना ज़रूरी है। ताकि ये भी सामान्य व्यक्ति की तरह ज़िंदगी गुज़ार सकें।
अपने विचार कमेंट बॉक्स में ज़रूर दें। ताकि इसपर कुछ कदम उठाया जा सके।
Aap saksham karyala see sampark Karen . yah social welfare department ke andar Kam karta hai
ReplyDeleteऐसे लोगों के लिए काम किया जना चाहिए...बहुत पहले साहित्यकार और कवी मानोज कुमार झा ने एक चर्चा में ये कहा था कि वह ऐसे लोगों के लिये एक आश्रम खोलना चाहते हैं।।
ReplyDeleteKab tak jeeye.. Jab tak jeeene ki aash hai... Kab talak chup rhenge.. Jab dil me neki ki badh hai... 👍
ReplyDeleteSamaj men jagrukta ki zarurt hai. State level par rehabilitation centre zarur Hona Chahiye.
ReplyDelete