एक बाबा ऐसे भी: जानिए असाढ़ी के जल मंदिर की कहानी
एक बाबा ऐसे भी।
जब बात बाबा की हो रही हो तो कुछ पॉजिटिव भी होना चाहिए। शायद ही कुछ लोग जानते होंगे की समस्तीपुर ज़िले के ताजपुर प्रखंड के रामापुर महेशपुर पंचायत के आसाढी ग्राम में देवेन्द्र नारायण ठाकुर नाम के बाबा का वास था। इन्होंने अपनी पूरी जिंदिगी सेवा में गुज़ार दी। पहले देश की सेवा की फिर धर्म की। महात्मा देवेन्द्र नारायण ठाकुर बहुत कम उम्र में ही घर छोड़ कर चले गए और CRPF ज्वाइन कर लिया। यहाँ उन्होंने अपने विलक्षण प्रतिभा के कारण सिपाही पद से तरक्की कर के SP तक का पद प्राप्त किया और इसी पद से रिटायर कर गए। गांव के लोग बताते हैं ये 22 साल के बाद पहली बार अपने ग्राम आये और मंदिर का शिलान्यास रखा। रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपना पुरे जीवन की पूंजी को धर्म के काम में लगा दिया। उन्होंने गांधी चौक से ले कर आसाढी तक कई मंदिर का निर्माण किया। जिसमे जल मंदिर जो तालाब के बीचो बीच है सबसे महत्वपूर्ण है। तालब के बीच में राम जानकी मंदिर है और उसके चारो तरफ भी कई मंदिर हैं जिसमे शिव मंदिर दुर्गा मंदिर आदि प्रमुख हैं। इस स्थल की तुलना ताजपुर के वरिष्ठ पत्रकार R.p. Singh Nirala जी ने अपने लेख में द्वारिका से की है। इन मंदिरों को बनवाने के लिए उन्होंने किसी से चन्दा नहीं किया बल्कि अपनी जमा पूंजी को इस पूण्य कार्य में लगाया। महात्मा देवेन्द्र नारायण ठाकुर केवल धार्मिक कार्यों को ही पूण्य का कार्य नहीं समझते थे। उन्होंने शिक्षा के महत्त्व को समझते हुए अपने गांव में पांच कमरे का एक विद्यालय भी बनवाया जिसमे आज सरकारी स्कूल चल रहा है। आज के इस युग में जब की ढोंगी बाबा की कमी नहीं है दूसरों के पैसे से विलासिता की जीवन व्यतीत करते है महात्मा डी एन ठाकुर का महत्त्व और बढ़ जाता है। आजीवन अविवाहित रह कर पहले देश की सेवा करते हैं फिर धर्म और मानव सेवा करते करते अपना प्राण त्याग देते हैं।
जब बात बाबा की हो रही हो तो कुछ पॉजिटिव भी होना चाहिए। शायद ही कुछ लोग जानते होंगे की समस्तीपुर ज़िले के ताजपुर प्रखंड के रामापुर महेशपुर पंचायत के आसाढी ग्राम में देवेन्द्र नारायण ठाकुर नाम के बाबा का वास था। इन्होंने अपनी पूरी जिंदिगी सेवा में गुज़ार दी। पहले देश की सेवा की फिर धर्म की। महात्मा देवेन्द्र नारायण ठाकुर बहुत कम उम्र में ही घर छोड़ कर चले गए और CRPF ज्वाइन कर लिया। यहाँ उन्होंने अपने विलक्षण प्रतिभा के कारण सिपाही पद से तरक्की कर के SP तक का पद प्राप्त किया और इसी पद से रिटायर कर गए। गांव के लोग बताते हैं ये 22 साल के बाद पहली बार अपने ग्राम आये और मंदिर का शिलान्यास रखा। रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपना पुरे जीवन की पूंजी को धर्म के काम में लगा दिया। उन्होंने गांधी चौक से ले कर आसाढी तक कई मंदिर का निर्माण किया। जिसमे जल मंदिर जो तालाब के बीचो बीच है सबसे महत्वपूर्ण है। तालब के बीच में राम जानकी मंदिर है और उसके चारो तरफ भी कई मंदिर हैं जिसमे शिव मंदिर दुर्गा मंदिर आदि प्रमुख हैं। इस स्थल की तुलना ताजपुर के वरिष्ठ पत्रकार R.p. Singh Nirala जी ने अपने लेख में द्वारिका से की है। इन मंदिरों को बनवाने के लिए उन्होंने किसी से चन्दा नहीं किया बल्कि अपनी जमा पूंजी को इस पूण्य कार्य में लगाया। महात्मा देवेन्द्र नारायण ठाकुर केवल धार्मिक कार्यों को ही पूण्य का कार्य नहीं समझते थे। उन्होंने शिक्षा के महत्त्व को समझते हुए अपने गांव में पांच कमरे का एक विद्यालय भी बनवाया जिसमे आज सरकारी स्कूल चल रहा है। आज के इस युग में जब की ढोंगी बाबा की कमी नहीं है दूसरों के पैसे से विलासिता की जीवन व्यतीत करते है महात्मा डी एन ठाकुर का महत्त्व और बढ़ जाता है। आजीवन अविवाहित रह कर पहले देश की सेवा करते हैं फिर धर्म और मानव सेवा करते करते अपना प्राण त्याग देते हैं।
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