.....और पिंकी बनी बैंक वाली दीदी।। कहानी बदलाव की

...और पिंकी बनी बैंक वाली दीदी
राजीव रंजन 




समस्तीपुर जिले के मोरवा प्रखंड अन्तर्गत वाजिदपुर की पिंकी की कल तक अपनी कोई पहचान नहीं थी, पर आज गांव-समाज में लोग उन्हें उनके नाम और काम से जानते हैं। आज हर वर्ग के लोग उनकी इज्जत करते हैं। मात्र 27 वर्ष की उम्र में ही पिंकी सफलता की नित्य नई कहानियां लिख रही हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि की पिंकी स्नातक उत्तीर्ण हैं और उनके आंखों में कई सपने पल रहे थे। उनके सपनों को पंख लगाने का काम उनके परिजनों के साथ जीविका ने किया। आज जीविका की मदद से पिंकी दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक, हलई में बैंक मित्र के रूप में कार्य कर रही हैं। पिंकी जीविका दीदियों को तो बैंकिंग संबंधित कार्यों में मदद कर ही रही हैं, अपने क्षेत्र के ग्रामीण लोगों की बैंकिंग से जुड़ी आदतों में भी बदलाव ला रही हैं। कल तक जो लोग बैंक जाने से कतराते थे या जिनकी रूचि बैंकों की विभिन्न योजनाओं से लाभ लेने में नहीं थी उन्हें भी पिंकी ने बैंकों से जोड़ा और उसका लाभ दिलवा रही हैं। इसी का नतीजा है कि पिंकी के कारण आज दर्जनों दीदियों ने अपना व्यक्तिगत खाता बैंकों में खुलवाया और अपना बीमा भी करवाया है।
पृष्ठभूमि
पिंकी का जन्म 5 जून 1992 को एक काफी गरीब परिवार में हुआ। घर वालों के सहयोग से उन्होंने कठिनाईयों के बीच इंटर तक पढ़ाई की। इसी बीच वर्ष 2009 में उनकी शादी एक व्यवसायी राहुल कुमार के साथ कर दी गयी। शादी के समय पिंकी को ऐसा लगा कि अब वो आगे नहीं पढ़ पाएंगी। उन्हें अपने सारे सपने बिखरते हुए नजर आने लगे। लेकिन ससुराल और पति के सहयोग से शादी के बाद भी उनकी पढ़ाई जारी रही। वर्ष 2014 में उन्होंने स्नातक की अपनी षिक्षा पूरी की। वो बताती हैं कि पढ़ाई को जारी रखने में पति की महत्वपूर्ण भूमिका रही। पति के सहयोग के कारण ही वो आगे की पढ़ाई पूरी कर पाईं। पिंकी ने कम्यूटर की भी शिक्षा प्राप्त की है और कम्प्यूटर पर काफी बेहतर तरीके से कार्य कर लेती हैं। पति की कम आमदनी के कारण पिंकी को घर चलाने में आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ता था। आर्थिक स्थिति से निपटने के लिए पिंकी हमेशा चिंतित रहती थीं।
समूह से जुड़ाव
 पिंकी कहती हैं कि जब वो अपने ससुराल में एक सामान्य महिलाओं की तरह अपना जीवन जी रही थीं तो उन्हें जीविका के स्वयं सहायता समूहों के बारे में जानकारी मिली। उन्हें यह जानकारी मिली कि गरीबी से कैसे निकला जा सकता है और छोटी-छोटी बचतों से कैसे हम अपनी जिन्दगी में बदलाव ला सकते हैं। सारी जानकारी मिलने के बाद जब पिंकी संतुष्ट हो गयीं तो मार्च 2014 में सरस्वती स्वयं सहायता समूह से जुड़ गयीं। आरंभ में तो थोड़ी बहुत परेशानी हुई लेकिन समूह की बैठकों में निरंतर प्रतिभागिता करती रहीं। घरेलू खर्चों में से पैसे को बचा-बचा कर समूह में बचत करती थीं। पिंकी कहती हैं कि-‘कल तक जिस गरीबी से मैं काफी डरती थी, समूह में जुड़ने से बाद उस गरीबी से लड़ने की मुझमें ताकत आ गयी।‘ आजीविका संबंधी गतिविधि
पिंकी के पति की अपनी एक छोटी सी दुकान थी। जिससे काफी कम आमदनी होती थी। उन्हें हमेशा पूंजी की कमी के कारण परेशानी झेलनी पड़ती थी। बाजार से ऋण लेने की हिम्मत नहीं होती थी क्यूँकि उसका ब्याज काफी ज्यादा होता था। इसी बीच जब पिंकी ने अपनी समस्या समूह के सामने रखी तो समूह ने उन्हें मदद करने का आश्वासन दिया और उन्हें 50 हजार रूपये का ऋण दिया। इस ऋण के पैसे से पिंकी ने पति को फोटो खिंचने वाला डिजीटल कैमरा खरीद दिया, जिससे उनका डिजीटल स्टुडियो काफी बढ़िया से चलने लगा। कल तक पिंकी के घर की आमदनी 2 से 3 हजार थी, जो अब बढ़कर 5 से 6 हजार हो गयी। दुकान की आमदनी से समूह से लिए ऋण को भी पिंकी ने ससमय वापस कर दिया।
बैंक मित्र के रूप में कार्य 
पिंकी कुमारी का चयन बैंक मित्र के रूप में उनकी योग्यता और कार्य करने की क्षमता को देखते हुए वर्ष 2014 में अमर जीविका महिला ग्राम संगठन द्वारा किया गया। बैंक मित्र के रूप में चयन के बाद उन्हें प्रशिक्षण दिया गया और वो दक्षिण बिहार ग्रामीण बैंक हलई में कार्य कर रही हैं। बैंक मित्र के रूप में कार्य करते हुए पिंकी ने कई नए मानक को भी स्थापित किया। पिंकी बताती हैं कि बैंक मित्र के रूप में वो जीविका दीदियों के व्यक्तिगत खाता खुलवाने, बीमा करवाने, जमा-निकासी करवाने, जीविका के सामुदायिक आधारित संगठनों के खाता खुलवाने, जमा-निकासी सहित अन्य कार्यों में सहयोग प्रदान करती हैं। उन्होंने बताया कि सामुदायिक आधारित संगठनों यथा स्वयं सहायता समूह, ग्राम संगठन, संकुल स्तरीय संघ आदि का 300 से ज्यादा खाता अपने बैंक में खुलवा चुकी हैं। वहीं जीविका दीदियों का 300 से ज्यादा व्यक्तिगत खाता भी खुलवा चुकी हैं। लगभग 200 दीदियों का पिंकी ने बीमा भी करवाया है। पिंकी बताती हैं कि-गांव में लोगों को बैंकों से जुड़ने, बचत करने, हस्ताक्षर सीखने जैसी बातें भी बताती हूं। पिंकी के प्रयास से दर्जनों जीविका दीदियां जो कल तक हस्ताक्षर करना नहीं जानती थी, हस्ताक्षर करना सीख गयी हैं। पिंकी माननीय प्रधानमंत्री जी के संपूर्ण वित्तीय समावेशन के सपनों को अपने कार्यों के माध्यम साकार कर रही हैं। परिवार का सहयोग पिंकी को जीविका समूह से जुड़ने और बैंक मित्र के रूप के कार्य करने के दौरान कई बार परेशानियों का सामना भी करना पड़ा। खासकर जब वो समूह में जुड़ी तो ग्रामीण ने उनका काफी मजाक बनाया। कई लोगों ने उन्हें यहां तक कहा कि सभी को ठग लेगी, पैसा लेकर भाग जाएगी। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपने प्रयास में लगी रही। बैंक मित्र के रूप में कार्य करने के दौरान भी कई बार उन्हें समाज के लोगों के मजाक का शिकार होना पड़ा लेकिन उनके परिजन खासकर उनकी सास और उनके पति ने उनका हमेशा से साथ दिया। पिंकी कहती हैं कि चाहे बात पढ़ाई की हो या समूह से जुड़ने और बैंक मित्र के रूप में कार्य करने की सभी में उनके पति और उनके परिजनों ने उनका साथ दिया है। यही कारण है कि उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखा है और बैंक मित्र के रूप में सफलता पूर्वक कार्य कर रही हैं। वो कहती हैं कि-‘कल तक हमारा परिवार आर्थिक तंगी का शिकार था लेकिन जीविका की मदद से आज हमारा परिवार बेहतर जिन्दगी जी रहा है। पति की आमदनी बढ़ गयी है। मैं भी अपने आमदनी से घर में आर्थिक सहयोग प्रदान कर रही हूं। अब मेरे दोनों बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं।‘ बदलाव की प्रतीक पिंकी की आज मोरवा प्रखंड में अपनी एक अलग पहचान है। कल तक स्थानीय लोग उन्हें उनके पति के नाम से उन्हें जानते थे लेकिन आज उनकी अपनी व्यक्तिगत पहचान है। सभी उन्हें बैंक वाली दीदी कहते हैं। पिंकी कहती हैं कि यह सुनकर उन्हें काफी अच्छा लगता है। वो कहती हैं कि-‘कल और आज की तुलना में काफी कुछ बदल गया है।‘ इस बदलाव को पिंकी काफी अच्छा मानती हैं। कहती हैं कि यह सब देखकर अच्छा लगता है। दीदियों की जब उनके कामों में मदद करती हूं तो काफी सुकून मिलता है। पिंकी बताती हैं कि जीविका से जुड़ने के बाद से ही कई नई बातों से अवगत होती गयी लेकिन जब से बैंक मित्र बनी हूं तो और भी ज्ञान बढ़ा। कल तक दूसरों को बैंक में काम करते हुए देखती थी आज खुद बैंक में कार्य करती हूं तो गर्व होता है। पिंकी कहती हैं कि सारी महिलाओं को जीविका से अवश्य ही जुड़ना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए। पिंकी का सपना आगे पीजी या बीएड करने की है। वो चाहती हैं कि समाज की अन्य वैसी महिलाएं जो किसी ना किसी रूप से संघर्ष कर रही हैं उन्हें मुझे देखना चाहिए और अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए जी-जान से मेहनत करनी चाहिए।
लेखक जीविका में प्रबंधक संचार के रूप में समस्तीपुर में पदस्थापित हैं। 

Comments

Popular posts from this blog

Pamariya: An untold Story

मेरे स्टूडेंट ही मेरा संदेश हैं: मास्टर ग़ुलाम फ़रीद